Last updated on September 25th, 2024 at 01:41 pm
माता सरस्वती जो वीणा वादिनी है ज्ञान की देवी है जिनके बिना संसार में सभी अज्ञानी है, सुर के लिए भी माँ सरस्वती की आराधना की जाती है, वाणी के लिए भी और सद्बुद्धि के लिए भी माँ शारदे की आराधना ही की जाती है, हम भी माँ सरस्वती के चरणों में मस्तक नवाते हुए प्रार्थना करते है की हमें ज्ञान की ज्योति से प्रकाशित करें.
बसंत पंचमी सरस्वती माँ की कथा
बसंत पंचमी की कथा हम आज आपको सुनाएंगे, उपनिषदों की कथा के अनुसार, जब श्रृष्टि का प्रारंभ हुआ तब, ब्रह्मा जी ने सभी जीवो और मनुष्यों की रचना की, तथा उन्हें तरह तरह के आकर प्रकार प्रदान किए, किन्तु उन्हें लग रहा था की शायद कहीं को कमी है, वे अपनी इन रचनाओ से संतुष्ट नहीं थे.
वे तरह तरह के उपाय करने में लीन थे, मगर उन्हें आत्मसंतुष्टि प्राप्त नहीं हो पा रही थी, तब वो विष्णु भगवान् के पास गए, और अपनी परेशानी का कारण बताया, उन्होंने कहा की मैंने श्रृष्टि की सर्जना तो कर दी, मगर इसमें कुछ छुट गया है, ये सुना सुना सा लग रहा है, ये एकदम मौन है.
तब विष्णु जी ने उनकी समस्या का समाधान मंद मंद मुस्काते हुए इस तरह किया, विष्णु भगवान् ने माता आदिशक्ति दुर्गा का आह्वान किया, जिससे माता भवानी दुर्गा वहां पर प्रकट हो गई, तब सबने माता से इस समस्या का निवारण करने की प्रार्थना की.
श्री हरी विष्णु और ब्रह्मा जी की बाते सुनने के बाद माता के अन्दर से एक श्वेत रंग का तेज निकला जिससे सबकी आँखे पल भर के लिए स्थिर हो गई, उस तेज में एक ऐसी देवी उपस्थित थी, जिन्होंने स्वेट रंग के वस्त्र धारण किए हुए थे, एक हाथ में वीणा थी, दूसरा हाथ वर मुद्रा में था, और अन्य हाथो में माला व् पुस्तक थी, ऐसा अद्भुत रूप और तेज देख कर हर कोई मन्त्र मुग्ध हो गया.
तब माता सरस्वती ने शब्द की रचना की, संसार को शब्द दिए, और जो पवन बिना किसी ध्वनि के चल रही थी, उसे सरसराहट दी, प्राणियों व् मनुष्यों को आवाज दी, और एक ऐसी मधुर ध्वनि अपने वीणा से उत्पन्न की की संसार को संगीत मिल गया.
इस तरह से माता सरस्वती की उत्पति हुई, ये कहानी उपनिषदों में मिलती है, हो सकता है की किसी और ग्रन्थ में या शास्त्र में ये कहानी थोड़ी सी भिन्न हो मगर, असल बात इसी से मिलती जुलती ही है, क्योकि संसार में जैसे जैसे ऋषी मुनि हुए उन्होंने अपने हिसाब से इसका वर्णन किया है.
सरस्वती वंदना
वर दे माँ, वार दे
अज्ञानता को संहार दे
हे वाघेश्वरी हे ज्ञानेश्वरी
हे माँ सरस्वती शारदे
कृष्ण पूजिता सर्व वंदिता
सब रागों की तुम ही रचिता
कमल हासिनी हंस विराजिनी
ज्ञान की तुम चिर सरिता
रजत कनक न मोती मानक
मुझको बनादे तेरा साधक
तुझको ध्याऊँ तुझको पूजूं
कंठ को मेरे प्राण दे
विणा वादिनी वाणी प्रदाता
कला की देवी बुद्धि विधाता
ध्वल वर्ण है श्वेत वस्त्र है
विणा माल और शास्त्र हस्त है