आज पितृपक्ष (pitru paksha) की बात करने से पहले हम यह जान लेते है की पितृपक्ष क्या होता है, तो दोस्तों पितृपक्ष भारतीय सनातन धर्म के तहत एक बेहद ही महत्त्वपूर्ण समय माना गया है, जिसे हमारे पूर्वजो और उनकी आत्माओं की शांति और श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए मनाया जाता है.
पितृपक्ष और पूर्वज
हिन्दू पंचांग के अनुसार यह पितृपक्ष भाद्रपद की एकम से लेकर के अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक चलता है, ये पंद्रह दिनों का समय होता है जिसे हम श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष कहते है, इस समय के दौरान हम अपने पूर्वजो की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करते है जिसमे तर्पण और पिंडदान शामिल होता है.
देखा जाए तो पितृपक्ष का एक धार्मिक महत्तव भी है तो साथ ही आध्यात्मिक महत्त्व भी है जो बहुत ही गहरा है और इसे समझने की आवश्यकता है, शास्त्रों में पितरो को देवताओ के बराबर माना गया है, और ऐसा विशवास है की पितरो की कृपा अगर हो जाए तो जीवन में अनेको खुशियाँ आती है और उनकी कृपा से ही हमें जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है, वही अगर पितृ नाराज या दुखी हो तो जीवन में कठिनाइयो का सामना करना पड़ता है.
श्राद्ध पक्ष के दौरान किए गए सभी कार्य पूर्वजो की आत्मा की शांति के लिए होते है, और इससे हमारी आने वाली पीढियों को भी उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है, और इसलिए इस समय को धार्मिक ग्रंथो के हिसाब से पूर्वजो यानी की पितरो को समर्पित किया गया है.
एक कथा के अनुसार देखा जाए तो पितृपक्ष का महत्तव दर्शाती है की जब महाभारत के युद्ध के बाद कर्ण स्वर्ग पहुंचे तो वहां पर उन्होंने देखा की वहां पर केवल गहने और सोने चाँदी के बर्तन ही थे जब की भूख मिटाने के लिए खाने को कुछ भी उपलब्ध नहीं था, तब उन्होंने इंद्र देव से पूछा की ऐसा क्यों है, तब इंद्र देव ने कहाँ की तुमने अपने जीवन में बहुत दान किया है लेकिन अपने पूर्वजो के लिए कोई दान कभी नहीं किया और ये इसी का परिणाम है.
जो कार्य श्रद्धा और भाव से किया जाए वो ही किसी तक पहुच सकता है चाहे वो भगवान के लिए हो या पितरो के लिए हो, और इसी लिए इस समय को श्राद्ध कहा जाता है यानी की श्रद्धा से किया गया कार्य, जिसमे आप तर्पण करते है यानी की जल अर्पित करते है, और किसी ब्राह्मण को भोजन और वस्त्र या जो भी आपकी शक्ति हो उस हिसाब से दान करते है, इस समय पशु पक्षियों को भी जैसे की गाय, कुत्ता या कौवे को भोजन दिया जाता है, जो कहते है की हमारे पूर्वजो को मिलता है.
पितृपक्ष के नियम
पितृपक्ष के दौरान कई नियम और परम्पराओं का पालन किया जाता है जिनमे से मुख्य है की श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को सात्विक रहना चाहिए और अहिंसा का पालन करने के साथ दया भाव रखना होता है, साथ ही माँसाहार और तामसिक वस्तुओ से दुरी बनाए रखनी होती है, और इस समय के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है जैसे की नए कपडे पहनना या शादी ब्याह या कोई नए काम की शुरुआत आदि नहीं किए जाते है.
श्राद्ध तिथि कैसे जाने?
अब कई लोगो को ये भी कन्फ्यूजन रहता है की पितरो की श्राद्ध तिथि कैसे मालुम करें तो जिस दिन मृत्यु हुई होती है उस दिन जो भी तिथि हो, वो ही तिथि श्राद्ध के लिए होती है, और अगर ऐसा हो की मृत्यु की तिथि किसी कारण वश याद नहीं है तो ऐसे में क्या करना चाहिए, तो इसके लिए भी शास्त्रों में बताया गया है की अगर तिथि ज्ञात नहीं है तो अमावस्या यानी की पितृपक्ष के आखरी दिन श्राद्ध किया जा सकता है जसी सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है.
हमारा देश भारत ऐसा देश है जहाँ पर ऐसे तीर्थ स्थल मौजूद है जहाँ पर पितृपक्ष के दौरान लाखो लोग अपने पूर्वजो की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण के लिए आते है, इनमे गया (बिहार), हरिद्वार, काशी, प्रयागराज जैसे विशेष स्थान है जो प्रसिद्द है, कहते है की इन स्थानों पर किए गए श्राद्ध से पूर्वजो को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनका आशीर्वाद वंशजो पर बना रहता है.
FAQs: पितृपक्ष से जुड़े प्रमुख सवाल
पितृपक्ष में क्या करना चाहिए?
पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराना, गरीबों को दान देना, और पवित्र नदियों में तर्पण करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा, इस समय संयमित जीवन जीना चाहिए और तामसिक भोजन और अहिंसा से दूर रहना चाहिए।
पितृपक्ष क्यों मनाया जाता है?
पितृपक्ष हमारे पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि पितृपक्ष के दौरान पितरों की आत्मा पृथ्वी पर आती है और वे अपने वंशजों से श्राद्ध और तर्पण की प्रतीक्षा करते हैं। यह समय पूर्वजों को सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित करने का होता है।
क्या पितृपक्ष में भगवान की पूजा की जाती है?
पितृपक्ष के दौरान भगवान की पूजा का विशेष विधान नहीं होता, क्योंकि इस समय मुख्य रूप से पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध किए जाते हैं। हालांकि, भगवान का स्मरण और ध्यान अवश्य किया जा सकता है, लेकिन देवताओं की पूजा का विशेष महत्त्व नहीं होता।
क्या पितृपक्ष में मंदिर जाना चाहिए?
पितृपक्ष के दौरान मंदिर जाना वर्जित नहीं है, लेकिन मुख्य ध्यान पूर्वजों के लिए तर्पण और श्राद्ध पर होना चाहिए। अगर आप मंदिर जाते हैं, तो भगवान के आशीर्वाद के साथ अपने पितरों के लिए भी प्रार्थना कर सकते हैं।
पितृपक्ष हमारे पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने का समय है। यह एक ऐसा समय होता है जब हम अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करते हैं। यह न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे हमें यह संदेश भी मिलता है कि हमें अपने पूर्वजों के योगदान को कभी नहीं भूलना चाहिए।